स्ट्रोक के अधिकतर मामलों में माइनर स्ट्रोक्स की समस्या होती है | इसमें मस्तिष्क के किसी भी भाग में रक्त का संचार रुक जाता है और रक्त थक्के के रूप में
स्ट्रोक के शिकार अक्सर अधिक उम्र के लोग होते हैं | वर्तमान में स्ट्रोक के मामले युवाओं में अधिक देखने को मिल रहे है | यह मस्तिष्क के ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्राप्त करने से रोकता है।अचानक से होने वाली इस बीमारी का यदि समय पर उपचार करा लिया जाए तो काफी संभावना रहती है कि यह पूरी तरह से ठीक हो जाए | यदि इसके उपचार में देरी हुई तो कई बार यह शरीर के किसी भी अंग की अपंग का कारण बन सकता है | इसकी गंभीरता को नजर अंदाज न करें
स्ट्रोक के कारण
अक्सर स्ट्रोक की समस्या के दो कारण होते हैं
[1]-पहला कारण :- मस्तिष्क को मिलने वाली आवश्यक रक्त की मात्रा में अवरोध आना | इसमें आर्टिलरी फटने के कारण मस्तिष्क के किसी भाग में रक्त का थक्का बनने पर स्ट्रोक आता है, इसे माइनर स्ट्रोक कहते हैं |
[2]-दूसरा कारण:- इसमें आर्टिलरी के फटने पर अत्यधिक रक्तस्त्राव होने से स्ट्रोक होता है, इसे मेजर स्ट्रोक कहते हैं।
हालांकि मेजर स्ट्रोक की स्थिति में काफी संभावना रहती है कि मरीज के मस्तिष्क की सर्जरी करके समस्या का समाधान किया जा सके |
विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रोक की दोनों ही स्थितियों का प्रमुख कारण रक्त का गाढ़ा होना है, और यह समस्या शरीर में कोलेस्ट्रॉल के संतुलन बिगड़ने पर उत्पन्न होती है | इसलिए जरूरी है कि हमारा आहार पौस्टिक हो और नियमित व्यायाम को दिनचर्या में प्रमुखता से स्थान दिया जाए एवं अपने दिनचर्या में कुछ सुधार किया जाए ।
समझे स्ट्रोक का अंतर
हालाकिं स्ट्रोक के अधिकतर मामलों में माइनर स्ट्रोक्स की समस्या होती है | इसमें मस्तिष्क के किसी भी भाग में रक्त का संचार रुक जाता है और रक्त थक्के के रूप में जमकर रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करता है | ऐसे में मस्तिष्क का वह भाग शरीर के जिन अंगों के नियंत्रण का काम करता है, उन्हें करने में असमर्थ हो जाता है | ऐसे मरीजों का उपचार दवाओं व इंजेक्शन से किया जाता है | स्ट्रोक के अधिकतर मामलों में प्रारंभिक कार्रवाई मस्तिष्क क़ी क्षति और अन्य जटिलताओं को कम कर सकती है।
जबकि मेजर स्ट्रोक में आर्टिलरी फटने के कारण अधिक रक्त स्त्राव और रक्त जमने की समस्या होती है, जिससे मस्तिष्क का अधिक भाग प्रभावित होता है | इस स्थिति में चिकित्सक सर्जरी द्वारा मस्तिष्क के रक्त स्त्राव को बंद करते हैं और जमे हुए रक्त को निकालकर मस्तिष्क को पुनः सक्रिय करते हैं |
यदि स्ट्रोक पीड़ित को तीन घंटे की अवधि में चिकित्सा मिल गई तो काफी संभावना रहती है कि उसे बचाया जा सके इसलिए स्ट्रोक के मामलों में देरी ठीक नहीं होती है | प्रारंभिक कार्रवाई मस्तिष्क क़ी क्षति और इसकी जटिलताओं को कम कर देती है।
स्ट्रोक आने के प्रारंभिक लक्षणो की पहचान
- एक तरफ हाथ पैर का अचानक कमजोर होना |
- शरीर के किसी भी हिस्से का सुन्न पड़ जाना |
- चेहरे पर कमजोरी आना या तेढ़ा होना |
- शरीर का अनियंत्रित होना ।
- बोलने में परेशानी होना |
- देखने में परेशानी होना |
COMMENTS