डी-डाइमर एक तरह का प्रोटीन है जो कोरोना मरीज के फेफड़े में संक्रमण या सूजन के चलते बढ़ जाता है | इस जांच से यह पता चलता है कि खून गाढ़ा तो नहीं हो रहा
कोरोना टेस्ट को नजरअंदाज न करें Do not ignore the corona test
कोरोना संक्रमण काल में हर इंसान हर व्यक्ति की उत्सुकता है कि कोरोना की वैक्सीन जल से जल्द कब मिलेगी | लंबे अंतराल के बाद कुछ अच्छी खबर भी आई है | कोरोना वैक्सीन कुछ देशों ने तैयार कर ली है और जांच का सिलसिला लगातर जारी है | ऐसे में जरूरी है कि कोरोना के कुछ सामान्य लक्षण जैसे खासी जुखाम बुखार लगातार बने रहते है तो समय से कुछ जांच करायी जा सकती हैं और इन जांचो से कोरोना का पता लगाया जा सकता है | तो आइए जानते हैं कुछ विशेष जांचो के बारे में |
जांच क्यों आवश्यक है?
कोरोना के निदान और उपचार में विशेषजो का कहना है कि प्रारंभिक अवस्था से ही तमाम आशंकाओं और संभावित खतरों पर बारीकी से नजर रखी जाए तो प्रत्येक मौत को टाला जा सकता है | संक्रमण युक्त हो जाने के बाद भी इस बात को सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि शरीर के अंदर सब ठीक है कि नहीं |क्योंकि कोरोना संक्रमण के समय जरा सी भी चूक आपको भारी पड़ सकती है |ऐसे तमाम कोरोना टेस्ट उपलब्ध है जिन्हें आसानी से कराया जा सकता है जो महंगे भी नहीं है | किंतु फिलहाल जांच की जगह विशेषज्ञों द्वारा लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा रहा है और केवल गंभीर मरीजों के मामले में ही इन जांचों की सलाह विशेषज्ञ देते हैं |
यह जाँच मरीज के वर्तमान स्थिति के अनुसार होती है
यह जाँच मरीज के वर्तमान स्थिति के अनुसार होती है | हालांकि अस्पतालों चिकित्सकों व सरकार के अनुसार सभी संक्रमित को इन परीक्षणों की आवश्यकता नहीं पड़ती है | जैसे-
- सीआरपी,
- एलडीएच,
- फेरिटिन,
- पीसीटी,
- एलडीएच,
- डी-दायइमर,
- आइएल-6,
- ब्लड गैसेस,
- एएसटी,
- एएलटी, टी-बिल,
- क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट,
- न्यूट्रोफिल अकाउंट,
- लिंफोसाइट काउंट,
- प्लेटलेट काउंट
- और चेस्ट x-ray इत्यादि |
हालाकि कुछ आवश्यक जांचें जैसे- इंफ्लमेटरी मार्कर है, जिनसे शरीर के आंतरिक अंगों की स्थिति का पता चलता है | यह जाचे कब होनी चाहिए इसके लिए कोई आदर्श समय नहीं है, किंतु यह मरीज की स्थिति पर निर्भर होता है | हालाॅकि कुछ चिकित्सकों ने स्वीकार किया है कि यदि यह जांचे प्रारंभिक अवस्था में ही करा ली जाए, तो मरीज को गंभीर स्थिति में जाने से बचाया जा सकता है | इसके अतिरिक्त सामान्य संक्रमण के बाद ठीक हुए मरीजों की भी एहतियात के तौर पर यह जांचे कराई जानी चाहिए, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि व्यक्ति किसी तरह के अन्य खतरे में तो नहीं है |
क्यों जरूरी है यह जांच
डी-डाइमर टेस्ट
डी-डाइमर एक तरह का प्रोटीन है जो कोरोना मरीज के फेफड़े में संक्रमण या सूजन के चलते बढ़ जाता है | इस जांच से यह पता चलता है कि खून गाढ़ा तो नहीं हो रहा है | खून गाढ़ा होकर थक्का बनने से मरीजों की मौत भी हो सकती है, इसलिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं | इस जांच से यह भी पता चलता है कि रक्त के थक्का जमने की संभावना कितनी है | थक्का होने से फेफड़े और धमनी में ब्लॉकेज हो सकता है और फेफड़े की कार्य क्षमता भी प्रभावित हो सकती है |
आइएल-6
इसे इन्टरल्यूकिन-6 कहते हैं | फेफड़े में सूजन आने वाले साइटोंकाइन स्टार्म की वजह आइएल-6 है | इससे फेफड़े के टिश्यू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं |
पीटी एवं एपीटीटी
पीटी यानी प्रोथ्रॉम्बिन | रक्त का थक्का होने पर या आंतरिक हिस्सों में रक्तस्राव के खतरे का पता लगाने के लिए यह जांच कराई जाती है एक्टिवेटेड पार्सियल थ्रांबोप्लास्टिन टाइम, एपीटीटी नामक जांच भी इससे जुड़ी होती है |
सीआरपी, एलडीएच, व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन
सीआरपी एलडीएच, व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन आंतरिक अंगों में सूजन पता करने की जाचें हैं | कोशिकाएं टूटने की वजह से संक्रमण के मरीजों में सीआरपी का स्तर बढ़ा हुआ मिलता है |
Nice
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